Tuesday, December 27, 2011

अगर आप घी खाने से बचते हैं, तो आज से खाना शुरू कर दें क्योंकि...


घी भारतीय व्यंजनों,आयुर्वेदिक औषधियों का पुरातन काल से ही एक घटक रहा है, आयुर्वेद के ग्रंथों में तो घी के कई औषधीय महत्व को बताया गया है। कहा तो यहाँ तक गया है कि घी को अन्य औषधि से सिद्धित करने पर यह अपने गुणों को न छोडते हुए उस औषधि के गुणों को भी अपने अन्दर समाहित कर लेता है- है न कमाल की बात ,ये तो अनुकरणीय भी है,फिर डर कैसा ?

भारतीय गृहणियां इसे एक विशेष विधि से बनाती हैं, जिनमे गाय के दूध को लकड़ी या मिट्टी के बर्तन में रखकर पहले दही में बदला जाता है,अब दही को मथकर मक्खन प्राप्तकर धीरे-धीरे उबाल कर तबतक पकाया जाता है, जब तक मक्खन में स्थित दूध के ठोस कण तले में न बैठ जाएँ और फेन भाग ऊपर न आ जाय, इसके बाद फेन को सावधानी से चम्मच से अलग कर घी को भी चम्मच से साफ बर्तन में अलग कर लिया जाता है। ठंडा होने पर बर्तन का ढक्कन अच्छी तरह से बंद कर दिया जाता है,बस ध्यान रहे घी को कभी भी फ्रिज में न रखें। आयुर्वेद की कई दवाओं में 'घी ' का प्रयोग होता है तथा इस हेतु गाय के घी को श्रेष्ठ माना गया है।



आयुर्वेद के इन औषधियों को औषधिसिद्धित घृत के नाम से जाना जाता है जो निम्न हैं : फलघृत :-खून को बढाने वाला,बंध्या स्त्री को संतान्योग्य बनानेवाला।त्रिफलादीघृत :सभी प्रकार के उदर एवं कृमी रोगों को दूर करने वाला।वृहतकल्याणकघृत :गर्भ न ठहरने वाली स्त्री के लिए अत्यंत उपयोगी औषधि। अशोकघृत : लूकोरीया,कमर दर्द आदि में लाभकारी औषधि।

नवीनघृत :रुचिकारक,तृप्तिकारक,दुर्बलता दूर करने वाला,पुराणघृत या पुराना घी:10 वर्ष पुराना घी जुखाम ,खांसी ,मूर्छा,त्वक विकार ,उन्माद (पागलपन ) और अपस्मार (मिर्गी ) आदि रोगों में फयदेमंद ,पञ्चतिक्तघृत :त्वचा रोगों में प्रभावी होता है। आयुर्वेद मत से गाय का घी अन्य सभी घी की अपेक्षा स्वादिष्ट,बुद्धि ,कान्ति,स्मरणशक्ति को बढाने वाला,वीर्यवर्धक ,अग्निदीपक,पाचक ,यौवन को स्थिर रखने वाले गुणों से युक्त होता है, तो यूँ ही नहीं खाया जाता रहा है घी सदियों से ,बस आवश्यकता है शुद्ध एवं संयमित मात्रा में सेवन की।

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