Saturday, October 17, 2009

लक्ष्मी पूजन की कहानी

दीपावली की रात्रि में हमारे देश में लक्ष्मी पूजन करने की प्रथा सदियों पुरानी है। कभी आपने यह सोचा है कि यह पूजन क्यों किया जाता है। इससे सम्बन्धित एक पौराणिक कथा इस प्रकार है, बहुत साल पहले की बात है एक धनवान जमींदार था।
उसकी एक खूबसूरत लड़की थी, जिसका नाम किरण था। किरण प्रतिदिन अपने गांव के मंदिर में पुष्प चढ़ाने जाया करती थी और लौटते वक्त रास्ते में पीपल के पड़ के नीचे कुछ देर ठहर जाया करती थी। वो वहां पीपल के पत्तों से झरती नन्हीं ठंडी बूंदों का आन्नद लिया करती थी।
रोज की तरह उस दिन भी वो पीपल के पेड़ के नीचे ठंडी बून्दों का आन्नद ले रही थी , तभी लाल वस्त्रों में लिपटी एक स्त्री उसके पास आकर बोली -‘किरण प्रतिदिन जो ठंडी बूंदे इस पेड़ से बरसती हैं , वह सब मेरी ही कृपा है। दरअसल मैं पेड़ पर निवास करती हूं , देखो ऊपर मेरा घोंसला है। सुनकर किरण हंसी तो उस स्त्री ने कहा कि मैं चिड़िया नहीं लक्ष्मी हूं ।’
मैं जैसा चाहे रूप बदल सकती हूं। उसी से मैं बहुत प्रसन्न होती हूं और उसके घर पर धन की बरसात करती हूं। फिर उस स्त्री ने कहा कि आज मैं तुम्हें अपनी सखी बनाती हूं चलो मेरे घर। उस स्त्री ने किरण का हाथ पकड़ा और दूसरे ही पल में वह एक विशाल महल में पहुंच गई । वहां उस स्त्री ने उसका भव्य स्वागत किया।
तरह - तरह के व्यंजन खिलाए और सोने के झूले में झुलाते हुए कहा कि - ‘अब से हम दानों पक्की सहेलियां हैं । हां कल मैं तुम्हारे घर खाना खाने आऊंगी । फिर उस स्त्री ने तुरन्त किरण को पेड़ के नीचे लाकर छोड़ दिया। किरण जब देर से घर पहुंची तो पिता ने देरी का कारण पूछा ।
किरण ने सारी बात बताते हुए कहा , मुझे जो स्त्री मिली थी वो लक्ष्मी थी और हां कल अपने यहां खाना खाने आएंगी। लेकिन दूसरे ही पल किरण उदास हो गई। पिता ने पुत्री को समझाया ‘तू चिंता मत कर बेटी । हम अपनी हैसियत के मुताबिक उनका सत्कार अवश्य करेंगे। ’
फिर पिता ने कहा कि तू घर को लीप पोत कर स्वच्छ बना ले। घर में चारों ओर उजाला कर ले’। जब किरण घर की सफाई कर आंगन लीप पोत रही थी तभी आकाश में उड़ती हुई एक चील की चोंच से छूट कर एक नौलखा हार उसके आंगन में आ गिरा ।
यह लक्ष्मी जी की कृपा का फल है, हार को देखकर लड़की के पिता ने हर्ष पूर्ण मुद्रा में कहा। उस हार को बाजार में बेच कर जमींदार ने सोने चांदी के बर्तन खरीदे और रेशमी वस्त्र भी। लक्ष्मी जी जब पास आईं तो उनका शानदार स्वागत पिता पुत्री ने किया।
लक्ष्मी जी प्रसन्न हो कर लौट गईं। लक्ष्मी जी की इसी कृपा को पाने के लिए सर्वत्र पूजा की जाने लगी और घर दीपों से जगमगाने लगे।