Monday, August 24, 2009

नंद भारद्वाज को बिहारी पुरस्कार

नंद भारद्वाज को बिहारी पुरस्कार
25 अगस्त 2009, 01:39 hrs IST
जयपुर। पत्रकार, लेखक एवं साहित्यकार नंद भारद्वाज को सोमवार शाम के.के.बिडला फाउंडेशन के प्रतिष्ठित 'बिहारी पुरस्कार' से नवाजा गया। यह पुरस्कार राजस्थान के हिंदी एवं राजस्थानी लेखकों को दिया जाता है। भारद्वाज को वर्ष 2008 का यह पुरस्कार 'हरी दूब का सपना' कृति के लिए दिया गया है। जवाहर कला केन्द्र के रंगायन सभागार में हुए समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह एवं एक लाख की राशि प्रदान की। समारोह में के.के.बिडला फाउंडेशन की अध्यक्षा शोभना भरतिया, फाउंडेशन के निदेशक निर्मलकांति भट्टाचार्जी, निर्णायक समिति की अध्यक्षा प्रो.रमा सिंह, मंत्रिमंडल के सदस्य, साहित्यकार एवं शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
शोभना ने भारद्वाज के लेखन की तारीफ करते हुए कहा कि उनकी कविताएं मरू भूमि की सौंधी सुगन्ध से परिचय कराती हैं। प्रो. रमा सिंह ने कहा कि भारद्वाज की कृति आत्मसंवेदना और अनुभवों का दस्तावेज है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि लेखक, पत्रकार एवं साहित्यकार सदियों से समाज एवं सरकार का मार्गदर्शन करते आए हैं। वे हमेशा से सम्मानित रहे हैं और आगे भी रहेंगे।
सृजनशीलता को स्नेह पुरस्कार ग्रहण करने के बाद भारद्वाज ने कहा कि पुरस्कार साहित्यकार के सृजनात्मक कार्य को लोगों की नजरों में लाने का अवसर प्रदान करता है। वे इसे अपनी रचनाधर्मिता के प्रति स्नेह के रूप में देखते हैं।
40 कविताओं का संग्रहपुरस्कृत कृति 'हरी दूब का सपना' 40 कविताओं का संग्रह है। ये कविताएं मरूभूमि की विषमताएं, प्राकृतिक आपदाएं एवं सामाजिक विसंगतियों पर केन्द्रित हैं। कुछ कविताएं स्त्री की स्थिति, देश की समसामयिक समस्याओं एवं सामाजिक गैर-बराबरी के दर्द को भी बयां करती हैं।

Tuesday, August 18, 2009

यहां है स्वाइन फ्लू से बचने की सारी जानकारी...

यहां है स्वाइन फ्लू से बचने की सारी जानकारी...
Tuesday, August 18, 2009 16:17 [IST] (Ramesh Tawaniya) more information take(+919932419970)

स्वाइन फ्लू का प्रकोप भारत में दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। अब तक देश में इस महामारी की गिरफ्त में दम तोड़ने वालों की संख्या 26 हो चुकी है और सैकड़ों लोगों की स्थिति संदिग्ध बनी हुई है। विश्व में सबसे पहले यह मैक्सिको उत्पन्न हुआ था। वहां की सरकार ने इसे एक महामारी के तौर पर देखते हुए प्रभावी कदम उठाकर जड़ से उखाड़ फेंका। हालांकि इस कार्य को करते हुए भी कई जानें जा चुकी थीं। आज हमें भी ऐसे ही कुछ प्रभावी कदम उठाने की जरूर है। इसकी एक झलक तब मिली जब राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने भी देश के नाम संदेश देते हुए लोगों से आह्वान किया कि वे इस महामारी से निपटने के लिए आगे आएं।
मैक्सिको में कैसे हुआ नियंत्रित
स्वाइन फलू के नियंत्रण के लिए मैक्सिको में हेल्थ सेक्रेटरी जोस एंजेल कोरडोवा को जब इसकी सूचना मिली तो उन्होंने इसके लिए घोषणा की। अब तक हालांकि यह अपना असर दिखा चुका था। घोषणा में कहा गया कि सरकारी कामकाज के साथ अर्थव्यवस्था को कुछ समय के लिए रोक दिया जाए। इसी दौरान राष्ट्रपति फिलिप कालडेरोन ने मैक्सिकोवासियों को घर पर रहने का संदेश दिया। साथ ही उन्होंने जनता से कहा कि उनके घर के अलावा अन्य कोई स्थान इस समय सुरक्षित नहीं है।
राष्ट्रपति ने टीवी पर देश के नाम संदेश देते हुए बताया कि पिछले कुछ सालों में यह सबसे बड़ी समस्या पैदा हुई है जिसका हम सामना कर रहे हैं। उन्होंने सरकार के कार्यो में ढिलाई होने की बात का पुरजोर खंडन करते हुए कहा कि संबंधित विभागों ने इसके लिए तुरंत कार्यवाही की है। इस समय समस्या से निपटने के दो रास्ते सूझ रहे थे। पहला तो ये कि सभी गतिविधियों को कुछ समय के लिए ठप कर दिया जाए। दूसरा जनता को अतिसख्त नियमों या प्रतिबंधों का पालन कराया जाए।
इस समय तक मैक्सिको में 2498 मौतें हो चुकी थीं जिनमें से 1311 लोग ही अस्पताल में भर्ती किए गए थे। सरकारी अस्पतालों ने स्वाइन फलू का और अधिक असर पड़ने की संभावना व्यक्त की थी। कोरडोवा ने कहा कि इस दौरान सभी गैरसरकारी कार्यालय 1 मई से 5 मई तक बंद रहेंगे। इस तरह राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा कर दी गई। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी बंद रखा गया चाहे सरकारी हों या निजी सभी के लिए नियम लागू था। केवल कुछ जरूरी सेवाएं जैसे ट्रांसपोर्ट, सुपर मार्केट, ट्रेस कलेक्शन, हॉस्पिटल को ही खुला रहने दिया गया था।
कोरडोवा ने एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि यह मैक्सिकोवासियों के ऊपर निर्भर करता है कि उनके लिए कौन सी सेवाएं आवश्यक हैं और कौन सी नहीं। वैसे पुलिस एजेंसी और एयरपोर्ट सेवाएं खुली रहेंगी। इसी तरह टेलीकॉम सर्विस और फार्मेसीज व पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी खुली होंगी। ट्रेजरी सेक्रेटरी अगस्टिन के अनुसार इस महामारी के प्रकोप से बचने के लिए उठाए जा रहे कदमों के नतीजतन अर्थव्यवस्था का लगभग 0.3 से 0.5 प्रतिशत राशि खर्च होगी। इस तरह मैक्सिको में स्वाइन के आतंक का खात्मा किया गया।
स्वाइन फ्लू की पृष्ठभूमि
एच१एन१ स्पैनिश फलू से आया जो 1918 और 1919 के दौरान फैली एक महामारी थी। जिससे भारी संख्या में लोग मारे गए थे। यह सुअरों से आया था। 20क्वीं सदी में इसका संचलन मनुष्यों में भी हुआ। इंफ्लूएंजा विषाणु जो कि मानव इंफ्लूएंजा के लिए उत्तरदायी हैं में से दो सूअरों में भी फैल सकते हैं। इसे तीन श्रेणी इंफ्लूएंजा ए, इंफ्लूएंजा बी और इंफ्लूएंजा सी में बांटा गया है। इंफ्लूएंजा ए यह बहुत ही आम है। प्राय: पाया जाता है जो जल्दी ही ठीक भी हो जाता है।
इंफ्लूएंजा बी को सुअरों में नहीं देखा गया है। इंफ्लूएंजा सी यह कुछ ज्यादा प्रभावी है इसके मानव और सुअरों में फैलने के जीन आधारित अलग अलग भेद हैं। परंतु इसके जीन स्थानांतरण की क्षमता रखते हैं। यह विषाणु मानव और सुअरों को संक्रमित करता है लेकिन पक्षियों को नहीं। पहले भी इसका स्थानांतरण सुअरों और मानवों के बीच हुआ है। उदाहरण के लिए जापान और कैलिफोर्निया में बच्चों के बीच इसका कम प्रभावी प्रकार फैला था। अपने सीमित परपोषी जंतुओं और आनुवांशिक विविधता की कमी के कारण यह मानव में महामारी का कारण नहीं बन पाया है।
बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू
स्वाइन फ्लू की तरह बर्ड फ्लू भी कुछ वर्ष पहले दुनिया में दहशत फैला चुका है। यह बीमारी पक्षियों में एच5 एन1 नामक वायरस से फैलती थी। कुछ लोगों का कहना था कि यह वायरस अपना रूप बदलकर मानवों को भी अपने प्रभाव में ले सकता है। लेकिन सौभाग्य से यह वायरस मनुष्य के लिए उतना घातक साबित नहीं हुआ। यूरोप और एशिया के कुछ देशों में फैलने के बाद इसे नियंत्रित कर लिया गया।
वहीं स्वाइन फ्लू एच1 एन1 नामक वायरस के कारण फैलता है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार का वायरस सुअरों को पहले से ही प्रभावित करता आया है। 20क्वीं सदी में इसके मानवों प्रादुर्भाव की बात तब सामने आई जब मैक्सिको में अचानक इसने अपने पैर पसार कर कई जानें ले लीं। तब से इसे स्थानांतरित हो सकने वाला वायरस मानते हुए बचने के समुचित प्रयास किए गए। हालांकि अब तक इसका कोई वैक्सिन उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ दवाएं हैं जिनसे इलाज किया जाता है।
किन रास्तों से गुजर कर आया स्वाइन फ्लू
स्वाइन फ्लू का पहला मरीज मैक्सिको में पाया गया था। इसका प्रादुर्भाव होने पर मैक्सिको में यह तेजी से फैला। इसके बाद इसने अमेरिका, यूरोप, एशिया की यात्रा की। एक लहर की तरह चलते हुए 1 मार्च 1918 में अमेरिका में यह पहली बार सामने आया था। अब तक 74 देशों में स्वाइन फ्लू के 28 हजार से ज्यादा मामलों की पुष्टि की जा चुकी है। इसकी इस भयावहता को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित किया है।
कैसे करें पहचान
स्वाइन फ्लू संक्रमित व्यक्ति थकान महसूस करता है। उसे कमजोरी महसूस होने लगती है। बुखार उतरता और चढ़ता है। स्वाइन फ्लू की सबसे बड़ी पहचान मांसपेशियों में जबदस्त खिंचाव के साथ दर्द होना होता है।
क्या करना चाहिए
यह संक्रमण सांस के साथ तेजी के साथ फैलता है, इसलिए आशंकित व्यक्ति को सबसे पहले इस बारे अपने डॉक्टर से बातचीत करनी चाहिए। स्वयं किसी तरह की दवा लेने की गलती नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस संक्रमण में दवाएं बेअसर रहती हैं। यह संक्रमण एक वायरस के कारण फैलता है, इसलिए इसमें कौनसी एंटीबायोटिक टैबलेट काम करेगी, यह डॉक्टर ही तय कर पाते हैं।
ऐसे में दवा फायदा पहुंचाने की बजाए नुकसान कर सकती हैं। मनमाने तरीके से दवा लेकर आप अपने सही उपचार में देरी कर अपने लिए खतरे को और बढ़ा लेते हैं। एंटीबायॉटिक टैबलेट बैक्टीरिया से फैलने वाले संक्रमण के लिए कारगर हैं, वायरस पर ये बेअसर रहती है।
सबसे अधिक खतरा इन्हें
अस्थमा व दिल की बीमारी से पीड़ित, किडनी, लीवर, डायबिटीज के रोगी, गर्भवती महिलाएं, 65 वर्ष से अधिक के व्यक्ति और पांच साल से कम उम्र के बच्चों को इस संक्रमण से बचाने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत होती है।
तेजी से फैलता है
स्वाइन फ्लू एक से दूसरे व्यक्ति तक बड़ी तेजी के साथ फैलता है। बहती नाक के कारण और संक्रमित व्यक्ति के छींकने से यह वायरस दूसरे व्यक्ति में प्रवेश कर जाता है। अगर नाक पर रुमाल या हाथ रखे बिना संक्रमित व्यक्ति छींकता है तो एक मीटर के दायरे में किसी भी अन्य व्यक्ति में यह वायरस सांसों के जरिये प्रवेश कर जाता है। संक्रमित व्यक्ति द्वारा छूए गए टेलीफोन, दरवाजे के हैंडल और की-बोर्ड आदि को जब अन्य व्यक्ति छूते हैं तो यह वायरस उन्हें भी लग जाता है।
क्या है उपचार
एंटीवायरल ड्रग के प्रयोग से स्वाइन फ्लू के संक्रमण से बचा जा सकता है। टैमीफ्लू और रेलेंजी एंटी वायरल दवाएं हैं जो संक्रमित व्यक्ति को दी जा रही हैं। ये दवाएं वायरस के प्रभाव को कम करती हैं और फैलने से रोकती हैं। इन दवाओं को संक्रमण के चपेट में आने के 48 घंटे के अंदर लेना जरूरी होता है।
यह दवा संक्रमित व्यक्ति को पांच से सात दिन तक दी जाती हैं। दोनों तरह की दवाएं अलग-अलग आयु के लोगों को दी जाती हैं। इन दवाओं के कुछ साइड इफैक्ट भी हैं, जैसे जी घबराना, एकाग्रता न बन पाना और उल्टी आना। इस महामारी का इलाज मुख्यत: एलोपैथी से होता है परंतु होम्योपैथी डाक्टरों का कहना है कि उनके पास भी इस बीमारी को दूर करने की दवा मौजूद है।
पान में नीम-तुलसी खाएं और स्वाइन फ्लू भगाएं
स्वाइन फ्लू का डर हर किसी को सता रहा है। लोग इससे बचने के लिए डॉक्टरों से सलाह कर रहे हैं लेकिन अभी तक इसका टीका उपलब्ध नहीं है। एलोपैथी में भले ही इससे बचाव का रास्ता नहीं मिला है लेकिन भारत की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति (नैचरोपैथी) और आयुर्वेद के डॉक्टर दावा कर रहे हैं कि मामूली उपाय से स्वाइन फ्लू से बचा जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र बस्सी (जयपुर) के सीएमओ डॉ. एकलव्य बोहरा के अनुसार स्वाइन फ्लू से बचने के लिए पांच दिन तक सुबह खाली पेट एक पान के पत्ते में चूना लगाकर उसमें 5 नीम पत्ती व 5 तुलसी पत्ती डालकर खा लें।
पान थूकना नहीं है। पांच दिन तक यह उपचार लेने से स्वाइन फ्लू नहीं होगा। स्वाइन फ्लू की चपेट में आए व्यक्ति को दिन में दो बार नीम का धुआं दें तथा गिलोय सत्व एक चम्मच, 10 तुलसी के पत्ते उबालकर दिन में दो बार दें।
डॉ. बोहरा के अनुसार उक्त उपचार लेने से स्वाइन फ्लू होने के आसार नहीं के बराबर हैं। शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने से आसानी से वायरस का प्रभाव नहीं होगा और रोगों से लड़ने की शक्ति में भी बढ़ोतरी होगी।
क्या मास्क मददगार है
इसमें कोई दो राय नहीं कि संक्रमण से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम में मास्क का प्रयोग मददगार साबित होता है। मास्क का प्रयोग मास लेवल पर थोड़ा कठिन है। यही वजह है कि किसी भी संक्रमण की रोकथाम में यह कितना प्रभावी रहेगा कह पाना मुश्किल होता है। इस बात पर ध्यान देना चाहिए, यदि आप स्वाइन फ्लू से ग्रसित रोगी की देखभाल कर रहे हैं तो मास्क का प्रयोग जरूर करें।
घर पर बरतें सावधानियां
साबुन और पानी
पानी और साबुन संक्रमण के प्रभाव को 30 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। कहीं से आएं तो तुरंत साबुन से हाथों को धोएं। अगर पानी व साबुन उपलब्ध नहीं है तो एल्कोहल बेस्ड हैंड क्लिनर से हाथ धोएं। नाक और आंखों को न छुएं।
संक्रमण काल में शरीर को आवश्यक और पोषक खुराक देते रहना चाहिए। इससे शरीर को किसी भी संक्रमण से बचने की शक्ति मिलती है। प्रोटीन से भरपूर मांस, अंडे, मछली और मेवों का सेवन लाभकारी रहेगा। इसी तरह विटामिन बी6 और प्रोटीन के लिए फलियां, आलू और दूध का पर्याप्त सेवन किया जाना चाहिए। मिनिरल्स भी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित होते हैं।
नियमित व्यायाम करें
नियमित व्यायाम भी फ्लू के प्रभाव से बचा सकता है। यह रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है। व्यायाम करने से रक्त कोशिकाओं में बह रह रहा श्वेत रक्त तेजी के साथ बहता है। यह रक्त वायरस और किसी भी तरह के बैक्टीरिया से लड़ने का काम करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिदिन कम से 30 मिनट एरोबिक एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए। इनमें तैरना, दौड़ना और साइकिल चलाना शामिल हैं।
स्कूलों में बरतें सतर्कता
बच्चों को बीमार बच्चों के संपर्क से दूर रखें। बच्च बीमार है तो उसे घर पर रहने को कहें। हाथों को बार-बार धोएं। हाथ, मुंह और आखों को न छुएं। छींकते, खांसते समय मुंह पर रुमाल रखें।
क्या हैं लक्षण
* स्वाइन फ़्लू के लक्षण वहीं होते हैं जो आम फ़्लू के होते हैं - बुख़ार, खांसी, गले में दर्द, बदन दर्द, सर्दी लगना, थकावट महसूस होना.
* यदि आपको फ़्लू के लक्षण दिखाई देते हैं और आप हाल में मेक्सिको गए थे तो आपको डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए.
* यदि आपको शक है कि आपको स्वाइन फ़्लू है तो घर पर रहें और पहले चिकित्सक से फ़ोन पर सलाह लें.
वैक्सीन पर काम शुरू कब से?
चयन : डब्ल्यूएचओ ने वैक्सीन के विकास के लिए सीरम इंस्टीटच्यूट ऑफ इंडिया, पुणे का चुनाव किया।
शर्त यह : डब्ल्यूएचओ के मुताबिक विकसित होने वाले टीके के 10 फीसदी डोज अन्य देशों में उपयोग के लिए देना होंगे।
विशेषता : यहां स्टेट ऑफ द आर्ट फेसिलिटी है। अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड पर इसे प्रतिष्ठित बॉयो सेफ्टी लेवल-2 मिला हुआ है।
काम शुरू हुआ : 12 अप्रैल 2009 को मैक्सिको के वेराक्रुज शहर के पास एक गांव में स्वाइन फ्लू का पहला मामला सामने आने के कुछ ही दिनों बाद।
प्रगति : मानव पर सीमित परीक्षण की तैयारी। इसके लिए 25 वालंटीयर तैयार।
कब तक बनेगा : वैक्सीन सितंबर तक बनकर तैयार हो जाएगा। लेकिन व्यापक उपयोग के डोज तैयार होने में छह माह लगेंगे।
बनने में इतना वक्त क्यों?
मुर्गी के फर्टीलाइज्ड अंडे में फ्लू के वायरस को इंजेक्ट किया जाता है। इसमें वायरस को मल्टीप्लाय अर्थात अपनी संख्या बढ़ाने में छह माह लगते हैं। ऐसा लाखों अंडों में करना पड़ता है। इतने अधिक अंडे जुटाने में वक्त लगता है।
आखिर इतनी जरूरत क्यों?
इन्फ्लूएंजा के किसी भी नए वायरस को दुनियाभर में फैलने में कम से कम 25 सप्ताह लगते हैं, लेकिन स्वाइन फ्लू का वायरस नौ हफ्ते में ही सभी महाद्वीपों में फैल गया। इसे रोकने के लिए वैक्सीन ही कारगर होगा।
आशंकाएं क्या?
* भारी मांग के चलते वैक्सीन के डोज कम पड़ सकते हैं।* वैक्सीन के दो डोज की आवश्यकता होगी, जिससे सप्लाई में और कमी आ सकती है।* युद्धस्तर पर विकसित ये वैक्सीन, हो सकता है पूरी तरह कारगर न हो।* वैक्सीन आने तक वायरस ने खुद को बदल लिया तो वैक्सीन बेकार साबित हो सकता है।
कैसे बचेंगे कमी से?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैक्सीन में एडजुवैंट्स जोड़ने को कहा है। ये वे पदार्थ होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को मजबूत करते हैं और वैक्सीन का डोज कम लगता है।
टेस्ट कैसे?
* स्वाइन फ्लू के तीन स्ट्रेन अंडो में इंजेक्ट किए जाते हैं।* अंडे में ये वायरस मल्टीप्लाय होते हैं।* वायरस बाहर निकालकर उनमें कोई आनुवांशिक मिलावट हुई हो तो उसे दूर करके शुद्धिकरण किया जाता है।* वायरस को मारकर उसको तोड़ा जाता है।* वायरस की सतह पर मौजूद एंटीजन एचए और एनए को अलग किया जाता है।* वायरस के ऐसे तीन स्ट्रेन मिलाकर एक डोज बनता है।* इसे मानव शरीर में डालकर प्रतिरोधी कोशिकाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जाती है।
तकनीक कौन सी?
समय बचाने के लिए सेल कल्चर तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसमें अंडों की जगह कुत्ते की किडनी की कोशिका ली जाती है। इसमें वायरस को डालकर इसे प्रयोगशाला में बढ़ने दिया जाता है। बाद में वैक्सीन निर्माण की वही प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें कम वक्त लगता है।
किसे मिलेगी सबसे पहले?
अमेरिका की आधी आबादी चाहती है कि वैक्सीन सबसे पहले उन्हें मिले। लेकिन विश्व पैनल ने तय किया है कि सबसे पहले गर्भवती महिलाओं, फिर नवजात के संपर्क में आने वाले लोगों और इमरजेंसी मेडिकल वकर्स को वैक्सीन मिलेगी।
बड़ा खतरा क्या?
वैक्सीन को एकदम से बड़े पैमाने पर उपयोग करने में इसकी रिएक्शन होने का खतरा होता है। अमेरिका में 1976 में जब बड़े पैमाने पर फ्लू फैला था तो तत्कालिन राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड ने बड़े पैमाने पर वैक्सीन कार्यक्रम चलाया था। वैक्सीन से कई लोगों को गंभीर गंभीर किस्म का लकवा हो गया था। फोर्ड को इसके राजनीतिक परिणाम भी भुगतने पड़े थे।
हम कहां तक पहुंचे?
पुणो के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने स्वाइन फ्लू का वायरस अलग कर लिया है। यह इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का हिस्सा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे इनफ्लूएंजा के लिए दक्षिण एशिया की रेफरेंस लेब का दर्जा दिया है।
और कौन-कौन बना रहा है?
पेनेशिया बॉयोटेक, नई दिल्ली, भारत बॉयोटेक, हैदराबाद कैडिला फार्मास्यूटिकल, अहमदाबाद फोर्टिस इंडिया।
विदेशों में कितना काम?
नोवार्टिस, स्विस फार्मा कंपनी वैक्सीन के विकास में सबसे आगे चल रही कंपनी ने टीके का पहला बैच निकालकर 4 अगस्त को मानव पर परीक्षण किया है। अगले माह तक वैक्सीन इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होने की उम्मीद।
माउथ स्प्रे कौन बना रहा है?
यह कंपनी इंजेक्ट किए जाने वाले वैक्सीन के बजाय माउथ स्प्रे बनाने में लगी है। 17 अगस्त को इसका क्लिनिकल ट्रायल है।
वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां कौन सी?
* वैक्जीन, एडिलेड* सीएसएल बॉयोटेक, मेलबोर्न* सानाफी एवेंतिस, फ्रांस* ग्लेक्सोस्मिथक्लाइन, ब्रिटेन* प्रोटीन साइंसेस, अमेरिका* बायोंडवेक्स, इजरायल
Help Line Number +919413074482 (Dr. O. P. Tawaniya)