Sunday, May 9, 2010

बड़े बाबा और ‘बड़े’

amarnathअमरनाथ यात्रा इस बार इस 1 जुलाई से शुरू होगी और 24 अगस्त रक्षाबंधन को समाप्त होगी। अमरनाथ हिंदुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। कश्मीर राज्य के श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 3888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह गुफा ११ मीटर ऊंची है। यहां की प्रमुख विशेषता है कि पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण और शिव द्वारा माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताना है। प्राकृतिक बर्फ से निर्मित होने के कारण इस शिवलिंग को स्वयंभू हिमानी शिवलिंग कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन के महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग के दर्शन करने के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। गुफा की परिधि करीब १५क् फुट है और इसमें ऊपर से पानी की बूंदें (इतनी ठंडी कि गिरते ही बर्फ बन जाएं) टपकती हैं।

चमत्कारी शिवलिंग

पानी की टपकती बूंदों से ही शिवलिंग का निर्माण होता है। यह शिवलिंग करीब १क् फुट ऊंचा बनता है। हालांकि, इस बार शिवलिंग करीब 18 फुट ऊंचा बना है। गुफा में कच्ची बर्फ रहती है जो हाथों में लेते ही यह टूट जाती है, जबकि चमत्कारिक रूप से शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है। ऐसा कैसे होता है यह वैज्ञानिक भी नहीं जानते। इतना ही नहीं शिवलिंग का आकार भी चंद्रमा के घटने-बढ़ने के साथ ही घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को शिवलिंग पूर्ण आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा हो जाता है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणोश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड हैं।

वैज्ञानिक भी हुए फेल

विज्ञान कहता है कि बर्फ के बनने और उसके जमे रहने के लिए करीब शून्य डिग्री के आसपास तापमान रहना चाहिए। मगर, जून से शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा के दौरान वहां का तापमान कभी भी शून्य के नीचे नहीं रहता है। पारा हिमांक (वह बिंदु जहां पानी जमकर बर्फ बन जाता है) से नीचे हफ्ते में कभी एक आध बार बर्फबारी होने पर ही जाता है।

कुछ वैज्ञानिकों ने अमरनाथ में शिवलिंग के जमने के कारण को जानने के लिए वहां अध्ययन किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि अमरनाथ की गुफा की दीवारें रंध्र (छेद) हैं। इस वजह से ठंडी हवा गुफा में सकरुलेट करती रहती हैं। इस वजह से दीवार के पास बर्फ जम जाती है। हालांकि, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सका है कि अगर ऐसा है तो गुफा में एक ही शिवलिंग क्यों बनता है? वहां कई सारे शिवलिंग बन जाने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है।

एक आदमी यानी 100 वाट का बल्ब

दरअसल, पिछले कुछ वर्षो में आधिकारिक यात्रा शुरू होने से पहले ही हजारों लोग अमरनाथ के दर्शन कर लेते थे। वे धूप, दीप जलाने और पास से शिवलिंग को स्पर्श करते थे। हेलीकॉप्टर भी गुफा तक चला जाता था। इससे शिवलिंग जल्दी पिघल जाता था। बाबा को बचाने के लिए श्राइन बोर्ड द्वारा की गई कवायदें अब रंग ला रही हैं। हेलीकॉप्टर पंचतरणी के आगे नहीं जाने दिया जा रहा है। इसके साथ ही गुफा में एक साथ कई लोगों के प्रवेश से गर्मी बढ़ जाती है। वहां लोगों की भीड़ के कारण एक आदमी करीब १क्क् वाट के बल्ब जितनी ऊष्मा निकालता था। इससे जल्द ही शिवलिंग जल्दी पिघल जाता था। मगर, पिछले साल से लोगों को शिवलिंग तक जाने से प्रतिबंधित करने के लिए लोहे की सलाखें लगा दी गई। यही वजह है इस बार शिवलिंग 18 फीट लंबा बना है।

13 वर्षो से जा रहे हैं

अमरनाथ की 13 साल से यात्रा कर रहे भोपाल के महेंद्र दीक्षित बताते हैं कि साधारण तरीके से यात्रा में करीब 3 हजार रुपए का खर्च आता है। खाने की चिंता मत करें। कैंप में शुद्ध भोजन फ्री में मिलता है। यात्रा में जाने से पहले श्राइन बोर्ड से रजिस्ट्रेशन कराना पड़ता है। रजिस्ट्रेशन जम्मू और कश्मीर बैंक करती है, जिसमें करीब 30 रुपए का खर्च आता है। इसमें बीमा भी शामिल है। बालटाल से पंचकरनी तक हेलीकॉप्टर से जाने का खर्चा करीब 6 हजार रुपए है।

पहली बार फोन पर बातें

अमरनाथ गुफा के नीचे भक्तों के ठहरने के लिए टैंट एवं प्री फेब्रीकेटिड हट्स बनाए गए हैं। साथ ही इस बार भक्त यात्रा के दौरान परिजनों से भी बातचीत कर सकेंगे। यह सुविधा बीएसएनएल सैटेलाईट के जरिए देगा। बीएसएनएल पहलगांव मार्ग पर 9 और बालटाल मार्ग पर 2 बीटीएस स्थापित करेगा। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष सुरक्षाबलों की 130 अतिरिक्तकंपनियां तैनात की जाएंगी। सेना, अर्ध-सैनिक बल एवं राज्य पुलिस की करीब 100 कंपनियां कश्मीर में और 30 कंपनियां जम्मू तथा राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुरक्षा के लिए तैनात की जाएंगी।

मुस्लिम ने खोजी गुफाश्रद्धालुओं की यह मान्यता है कि इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी। इस कथा को सुनकर कबूतर का जोड़ा भी अमर हो गया जो अब भी गुफा में दिखता है। ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को कबूतरों का जोड़ा दिखाई दे जाता है उन्हें शिव-पार्वती दर्शन देते हैं और भक्तों को मुक्ति मिल जाती है।

कुछ विद्वानों का मानना है कि पार्वती को अमरकथा सुनाने ले जाते हुए शिव ने जिसे जहां छोड़ा वह जगह उसी के नाम से प्रसिद्ध हुई। अनंत नागों को जहां छोड़ा वह अनंतनाग बन गया। ऐसे ही माथे के चंदन को छोड़ने की जगह चंदनबाड़ी, पिस्सुओं को छोड़ने की जगह पिस्सू टॉप पर और शेषनाग को छोड़ने की जगह शेषनाग स्थल बन गया। इस गुफा का सबसे पहले पता १६वीं शताब्दी के पूर्वाध में बोटा मलिक नाम के एक मुस्लिम गड़रिये को चला था। आज भी जितना चढ़ावा अमरनाथ में आता है उसका चौथाई हिस्सा गड़रिये के वंशजों को जाता है।